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मक्के की फ़सल

मक्के की खेती (Maize farming information in Hindi)

मक्के की खेती (Maize farming information in Hindi)

मक्के को भुट्टा (Maize or Corn) भी कहा जाता है, बारिश में तो लोग बड़े ही शौक से भुट्टे को खाते हैं। मक्के से जुड़ी सभी आवश्यक बातों को जानने के लिए हमारी इस पोस्ट के अंत तक जरूर बने:

मक्के की खेती:

कृषि विशेषज्ञों के अनुसार मक्का एक खाद्य फसल है, मक्का मोटे अनाजों के अंतर्गत आता है। मक्के की फसल भारत के मैदानी भागों में उगाई जाती है तथा 2700 मीटर उँचाई वाले पहाड़ी क्षेत्रों तक फैली हुई है। मक्के की फसल के लिए सभी प्रकार की मिट्टी उपयोगी होती है परंतु किसान दोमट मिट्टी का चयन करते हैं। मक्के को खरीफ ऋतु की फसल में भी उगाया जाता है। मक्के में आवश्यक तत्व जैसे कार्बोहाइड्रेट का बहुत अच्छा स्त्रोत मौजूद होता है। आहार के रूप में मक्का बहुत ही महत्वपूर्ण और अपनी एक अलग जगह बनाए हुए हैं।

मक्के से बनने वाली डिशेस:

मक्के से विभिन्न प्रकार की डिशेस बनती है जैसे: गांव में मक्के को अच्छी तरह से सुखाकर पीसने के बाद गुड़ मिलाकर खाया जाता है, मक्के से हलवा बनता हैं, मक्के की रोटी गांव में लोग खाना बहुत पसंद करते हैं, मक्के को बारिश के दिनों में भून कर खाया जाता है, मक्के को स्वीट कॉर्न  (Baby Corn) के रूप में भी लोग काफी पसंद करते हैं, सभी प्रकार की डिशेस बनाने में मक्के का इस्तेमाल किया जाता है।

मक्के की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु और भूमि:

मक्के उत्पादन के लिए सबसे उपयुक्त जलवायु उष्ण और आर्द की जलवायु होती है जो फसलों को पनपने में सहायता करती है। मक्के की फसल के लिए जल निकास वाली भूमि सबसे आवश्यक मानी जाती है। खेत तैयार करते समय भूमि में जल निकास की व्यवस्था को बनाए रखना उपयुक्त होता है। पहली बारिश होने के बाद हैरो के पश्चात पाटा चलाना उपयुक्त है। 

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मक्के की फसल के लिए खेत को तैयार करें:

मक्के की फसल के लिए खेत को भली प्रकार से जुताई की आवश्यकता होती है। भूमि को जोत कर समतल कर ले, हरो का इस्तेमाल करने के बाद पाटा चला दे। अगर आप गोबर की खाद का इस्तेमाल करना चाहते हैं, तो सड़ी हुई खाद को अच्छी तरह से खेत की आखरी जुताई करने के बाद मिट्टियों में मिला दे।

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मक्के की फसल की बुवाई का समय:

मक्के की फसल की विभिन्न विभिन्न प्रकार की बुवाई इन के बीजों पर आधारित होती है और किस समय किस बीज को बोना चाहिए वह किसान उचित रूप से जानते हैं। इसीलिए फसल बुवाई का समय एक दूसरे से भिन्न होता है:

  • किसान मक्के की खरीफ फसल की बुवाई का समय जून से जुलाई तक का निश्चित करते हैं।
  • मक्के की रबी फसल की बुवाई का समय अक्टूबर से नवंबर तक का होता है।
  • मक्के की जायद फसलों की बुवाई का समय फरवरी से मार्च तक का होता है।

मक्के की फसल की बुवाई का तरीका:

मक्के की फसल बुवाई करने के लिए अगर आपके पास सिंचाई का साधन पहले से मौजूद है, तो आप 12 से 15 दिन पहले ही मक्के की बुवाई करना शुरू कर दें। मक्के की बुवाई आप बारिश शुरू होने पर भी कर सकते हैं। अधिक मक्के की पैदावार प्राप्त करने के लिए फसल की बुवाई पहले करे। बीज बोने के लिए इसकी गहराई लगभग 3 से 5 सेंटीमीटर तक रखना उपयोगी होता है। मक्की की बुआई करने के बाद एक हफ्ते के बाद मिट्टी चढ़ाना आवश्यक होता है। बुवाई किसी भी तरह से कर सकते हैं लेकिन पौधों की संख्या 55 से 80 हजार हेक्टेयर के हिसाब से रखनी चाहिए।

मक्के की फसल के लिए उपयुक्त खाद का चयन:

मक्की की फसल के लिए सबसे उपयोगी और आवश्यक सड़ी हुई गोबर की खाद होती है। कभी-कभी किसान उर्वरक खाद, नत्रजन फास्फोरस, पोटाश आदि का भी इस्तेमाल करते हैं।

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मक्के की फ़सल के लिए निराई-गुड़ाई:

मक्के की फसल की अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए निराई गुड़ाई बहुत ही आवश्यकता होती है। या निराई गुड़ाई आपको लगभग बीज बोने के बाद 10 से 20 दिनों के अंदर कर देनी चाहिए। यह निराई गुड़ाई आप किसी भी प्रकार के हल द्वारा या फिर ट्रैक्टर द्वारा कर सकते हैं। कुछ रसायनिक दवाओं का भी इस्तेमाल करें जैसे: एट्राजीन नामक निंदानाशक का इस्तेमाल करना उपयुक्त होता है। इसका इस्तेमाल अंकुरण आने से पहले 600 से 800 ग्राम तक 1 एकड़ की दर पर पूरे खेतों में भली प्रकार से छिड़काव करना उचित होता है। निराई गुड़ाई के बाद 20 से 25 दिनों के बाद मिट्टी चढ़ाएं।

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मक्के की फसल की सिंचाई:

मक्के की पूरी फसल को लगभग 400 से 600 मिनिमम पानी की जरूरत पड़ती है। मक्के की फसल की सिंचाई पुष्पन दाना भरने के टाइम करते हैं।सिंचाई करते समय हमेशा जल निकास की व्यवस्था को बनाए रखना बहुत जरूरी होता है।

मक्के की फ़सल को कीट व रोगों से सुरक्षित रखने के उपाय:

  • मक्के की फसलों को सुरक्षित रखने के लिए सिंचाई के पानी में क्लोरपाइरीफास 2.5 प्रति लीटर मिलाकर अच्छी तरह से सिंचाई करें।
  • मक्के के तने और जड़ों को सुरक्षित रखने के लिए लगभग आपको 10 लीटर गौमूत्र लेना है। उसमें आपको नीम के पत्ते, धतूरे के पत्ते, करंज के पत्ते, डालकर अच्छी तरह से उबाल लेना है। पानी जब 5 लीटर बजे तब उसे ठंडा कर अच्छी तरह से छान ले। अरंडी के तेल में लगभग 50 ग्राम सर्फ़ मिलाकर तनें और जड़ों में डाल दें।
  • मक्के की फसलों को सूत्रकृमि से बचाने के लिए फसल बोने के एक हफ्ते बाद 10 किलोग्राम फोरेट 10g का इस्तेमाल करे।
  • मक्के की फसल को तना छेदक कीट से सुरक्षित रखने के लिए कार्बोफ्यूरान 3g 20 किग्रा, फोरेट10% सीजी 20 किग्रा, डाईमेथोएट 30%क्यूनालफास 25 का इस्तेमाल कर छेदक जैसी कीटों से फ़सल की सुरक्षा करे।

मक्के की फसल की उपयोगिता:

मक्के की फसल में कार्बोहाइड्रेट का बहुत ही अच्छा स्त्रोत होता है। इसीलिए यह सबसे महत्वपूर्ण फसल मानी जाती है। मक्के की फसल मनुष्य और पशु दोनों के आहार का सबसे महत्वपूर्ण साधन होता है। मक्के की फसल औद्योगिक दृष्टिकोण में बहुत ही उपयोगी होती हैं। मक्के की फसल को सुरक्षित रखने के लिए भिन्न प्रकार की सावधानी बरतनी चाहिए। ताकि उनमें किसी प्रकार के कीड़े कीट ना लग सके। मक्के की फसल से किसानों को विभिन्न प्रकार का लाभ पहुंचता है आय निर्यात का साधन बना रहता है। 

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मक्के की फसल से बिहार में बढ़ेगा एथेनॉल का उत्पादन

मक्के की फसल से बिहार में बढ़ेगा एथेनॉल का उत्पादन

मक्के की फसल से बिहार में एथेनॉल (इथेनॉल; Ethanol) का उत्पादन किया जायेगा, जिसके लिए बिहार में बहुत बड़ा और नया प्लांट खुलने जा रहा है। इससे बिहार की अर्थव्यवस्था काफी हद तक बेहतर होगी, वहां के लोगों को रोजगार के अवसर भी मिलेंगे। साथ ही एथेनॉल उत्पादन से पेट्रोलियम के दामों में भी कमी आएगी। भारत में ग्रीनफ़ील्ड ग्रेन बेस्ड एथेनॉल प्लांट (Green Field Grain Based Ethanol Plant) की शुरुआत बिहार के पूर्णियां जिले में हुई है। यह प्लांट लगभग ६५ हजार लीटर उत्पादन करने में सक्षम है। देश में एथेनॉल से चलने वाली कार भी लॉन्च होने लगी है। आने वाले समय में एथेनॉल की मांग में बढ़ोतरी होने वाली है। मक्के की फसल से बिहार के लोग आत्मनिर्भरता की दिशा में बढ़ने का कार्य कर रहे हैं।

एथेनॉल की कितनी मांग है बाजार में

बिहार से एथेनॉल खरीदने के लिए पूर्व उघोग मंत्री शाहनवाज हुसैन, केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री को पत्र लिखकर तेल कंपनियों को बिहार से एथेनॉल खरीदने के लिए मांग की गयी है। बिहार में लगभग १३९ उघोगों को एथेनॉल उत्पादन के लिए प्रथम चरण में स्वीकृति दी गयी है, जिससे कि उत्पादन ४ करोड़ लीटर से बढ़कर ५८ करोड़ हो सके। हालाँकि अब बिहार की बेहतरीन पोलिसी से प्रभावित होकर अन्य कम्पनियाँ भी प्लांट खोलने के लिए आग्रह कर रही हैं। भविष्य में एथेनॉल की मांग में अच्छी खासी वृद्धि होने जा रही है, इसलिए एथेनॉल के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए कंपनियां पूर्ण प्रयास कर रही हैं।


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बिहार में एथेनॉल प्लांट की शुरुआत पुर्णिया जनपद से हुई है

बिहार के पुर्णिया जिले में सर्वप्रथम ग्रीनफ़ील्ड ग्रेन बेस्ड एथेनॉल प्लांट की शुरुआत हुई है, साथ ही यह बिहार का पहला वाटर बॉटलिंग प्लांट भी है। बिहार में एथेनॉल प्लांट के खुलने से करीबी क्षेत्रों में उन्नति होगी, जिसमें कतिहार, अररिया, किशनगंज और पुर्णिया जनपद सम्मिलित हैं। बिहार की अर्थव्यवस्था को देखते हुए वहां औघोगिक क्रांति की अत्यंत आवश्यकता है। बिहार में रोजगार के कम अवसर होने की वजह से वहां के ज्यादातर लोगों को अपनी आजीविका के लिए दूसरे प्रदेशों में जाना पड़ता है और वास्तविक मजदूरी से कम कीमत पर काम करना पड़ता है। एथेनॉल प्लांट खुलने से उनको गृह राज्य में ही रोजगार का अवसर प्राप्त हो पायेगा।

किसानों को एथेनॉल प्लांट खुलने से क्या लाभ होगा

एथेनॉल उत्पादन के लिए मक्का और धान जैसी फसलों की बेहद आवश्यता होती है और बिहार में मक्का की फसल से एथेनॉल उत्पादन किया जायेगा, जिसका प्रथम प्लांट पूर्णियां जिले में खुल चुका है। किसानों को मक्का और धान की फसल में काफी मुनाफा मिलेगा, साथ ही अच्छी कीमत पर उनकी फसल विक्रय हो पायेगी। किसानों को खाली समय में रोजगार का भी अवसर प्राप्त होगा।

एथेनॉल उत्पादन से देश को क्या लाभ होगा

इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल (ईबीपी; EBP - Ethanol Blended Petrol) कार्यक्रम जनवरी 2003 में शुरू किया गया था। कार्यक्रम ने वैकल्पिक और पर्यावरण के अनुकूल ईंधन के उपयोग को बढ़ावा देने और ऊर्जा आवश्यकताओं के लिए आयात निर्भरता को कम करने की मांग की। चूंकि इथेनॉल अणु में ऑक्सीजन होता है, यह इंजन में ईंधन को पूरी तरह से दहन करने देता है, जिसके परिणामस्वरूप उत्सर्जन कम होता है और इस तरह पर्यावरण कम प्रदूषित होता है।


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विश्व पर्यावरण दिवस, 5 जून 2021 के अवसर पर, माननीय प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने 2025 तक भारत में इथेनॉल सम्मिश्रण के रोडमैप पर विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट जारी की। रिपोर्ट के मुताबिक, 20% एथेनॉल ब्लेंडिंग अब संभव है। वर्ष 2025 तक, पेट्रोल में 20% इथेनॉल मिश्रण के उत्पादन के लिए केंद्रीय मंत्रालयों, राज्य सरकारों और वाहन निर्माताओं की विशिष्ट जिम्मेदारियों का सुझाव दिया गया है। वर्ष 2025 तक 20% इथेनॉल सम्मिश्रण से देश को अपार लाभ मिल सकता है, जैसे प्रति वर्ष 30,000 करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा की बचत के साथ ही ऊर्जा सुरक्षा, कम कार्बन उत्सर्जन, बेहतर वायु गुणवत्ता, आत्मनिर्भरता, क्षतिग्रस्त खाद्यान्न का उपयोग, किसानों की आय वृद्धि, रोजगार सृजन और अधिक निवेश के अवसर मिलेंगे। एथेनॉल उत्पादन से देश की अर्व्यवस्था मजबूत होने के साथ साथ पेट्रोलियम का आयात भी कम होगा, जिससे देश का पैसा बचेगा। फ़िलहाल एथेनॉल सम्मिश्रण की मात्रा देश में ५% है, जिसको वर्ष २०२५ तक २०% तक करने की तैयारी है। इससे पेट्रोल के खर्च में कमी आएगी और भारत आत्मनिर्भरता की और बढ़ेगा। पेट्रोलियम के लिए पूर्णतया विदेशों पर निर्भर रहने से देश का अधिक खर्च होता है, देश में ही एथेनॉल उत्पादित करके जीडीपी में बढ़ोत्तरी भी होगी और देश की स्थिति भी बेहतर होगी।